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कविता

प्रीति करि काहू सुख न लह्यो

सूरदास


प्रीति करि काहू सुख न लह्यो।
प्रीति पतंग करी पावक सौं, आपै प्रान दह्यो।
अलि-सुत प्रीति करी जल-सुत सौं, संपुट माँझ गह्यो।
सारंग प्रीति करी जु नाद सौं, सन्मुख बान सह्यो।
हम जो प्रीति करी माधव सौं, चलत न कछू कह्यो।
सूरदास प्रभु बिन दुख पावत, नैननि नीर बह्यो।।


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